पति से दुखी होकर, एक राजकुमारी ने क्यों किया, घोड़े से विवाह, Rajkumari, horse, Hindi story

एक घोड़े ने बताया कि स्त्री की तीन चीजें पति को बर्बाद कर देती है इन्हें कभी मत देखना वे तीन चीजें कौन सी है आइए इस कहानी के माध्यम से समझते है मित्रों किसी नगर में एक Sudas नाम का राजा रहता था राजा तो बड़ा बुद्धिमान था बहादुर था प्रजापालक था नीतिवाद था और धर्म क्रम में रूचि रखने वाला था राजा और रानी में बड़ा प्रेम था सब कुछ तो था पर कोई संतान नहीं थी यही बात सोच कर राजा और रानी दुखी रहते थे कि हमारे ना होने पर हमारे राज्य को कौन संभालेगा? एक दिन राजा के दरबार में कहीं से एक सन्यासी आ गया तो एक दासी आकर रानी के लिए ये खबर देती है कि हमारे यहाँ एक सन्यासी पधारे हैं, उनकी सेवा करके कुछ धर्म कमा लिया जाए, तब रानी उदास होती हुई बोली, दासी हम तो दान धर्म करते-करते थक चुके हैं, आज ये मेरा अंतिम दान और धर्म होगा, आज के बाद मैं कभी दान, धर्म नहीं करूंगी, इतना कह कर रानी एक टोकरी में अनाज लेकर सन्यासी के पास जाती है, और वो अनाज की झोली में डालने के लिए जैसे ही आगे बढ़ती है तो रानी का दुःख वो सन्यासी समझ जाता है संन्यासी पूछता है हे रानी तुम्हें क्या दुख है तुम्हें देखने से पता चलता है कि तुम किसी बात को लेकर बहुत दुखी हो तब आँखों में आँसू भरकर रानी Sonvati अपना दुःख बताती है हे महात्मा जी मेरे पास सब कुछ है पर एक संतान नहीं है मैंने लाखों यत्न कर लिए पर संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा है संन्यासी बोले हे रानी तो चिंता मत करो मैं तुम्हें पुत्र होने का वरदान दे रहा हूँ जल्द ही तुम्हारी गोद में एक पुत्र खेलेगा परंतु आपका पुत्र पंद्रह साल तक ही आपके पास रहेगा पंद्रह साल के बाद वो पुत्र तुम्हारे पास पृथ्वी लोक पर नहीं रहेगा मित्रों इतना कह कर संन्यासी ने अपनी झोली से कुछ भभूति निकालकर रानी को दे दी और कहा कि राजा और तुम मिलकर इस भभूति का सेवन करना भगवान की कृपा से बहुत जल्द तुम्हारी कोख से पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी रानी Son वरदान देकर सन्यासी चला गया सन्यासी के जाने के बाद रानी सोचने लगी चौदह पंद्रह साल ही सही कम से कम पंद्रह साल तक तो हमें पुत्र का सुख मिल ही जाएगा कम से कम समाज के लोग मुझे बांझ तो नहीं कहेंगे मेरे पति को निर्वंसिया तो नहीं कहेंगे रानी सोचने लगी कि पंद्रह साल तक मैं अपने पुत्र को खूब लाड़ प्यार करुँगी उसे हर प्रकार से खुश रखूँगी पुत्र के बारे में सोच सोच कर रानी बड़ी खुश होने लगी इधर शाम को जब राजा साहब रानी के पास गए तो रानी ने सारी बात बताई कि एक सन्यासी ने उन्हें पुत्र होने का वरदान दिया है और उस महात्मा ने हम दोनों को करने के लिए दी है, तब राजा कहते हैं, हे रानी हम दोनों अब तक रोज दान धर्म देते आए हैं, गरीबों की सहायता करते आए हैं, यज्ञ भंडारों की तो गिनती ही नहीं है, लेकिन फिर भी हमें पुत्र प्राप्त नहीं हुआ इससे सिद्ध होता है कि ईश्वर की कृपा हम पर नहीं है, हमसे भगवान रूठ गया है, यदि ईश्वर की कृपा होती तो हमें संतान प्राप्ति अब तक हो जाती है, अब तो हम बूढ़े हो चुके हैं, अब क्या आस की जाए आखिर सन्यासी के द्वारा दी गई इस विभूति से हमें अब इतनी उम्र में भला क्या संतान प्राप्त होगी? रानी Sonvati होने महाराज हमने अपनी जिंदगी में हजारों उपाय करके देख लिए दान, धर्म, यज्ञ तब सब कर लिया फिर भी कुछ प्राप्त नहीं हुआ अब ये आखरी उपाय और करके देख लो ना मालूम उस महात्मा ने किस भाव से हमें ये दिया है मित्रों राजा का हर व्यक्ति पर से विश्वास उठ चुका था अब उसे किसी पर विश्वास नहीं रहा लेकिन वो रानी के मन को इंकार करके दुखी नहीं करना चाहता था यही सोचकर राजा भभूति का सेवन करने के लिए राजी हो गया फिर दोनों ने भगवान का नाम लेकर उस भभूति को खा लिया मित्रों दिनों के बाद उस भभूति ने अपना प्रभाव दिखाया। रानी गर्भधारण कर लेती है ये खबर जब राजा ने सुनी तो राजा की भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। कुछ दिनों बाद रानी एक पुत्र को जन्म देती है। पुत्र की खुशी में राजा ने अपने महलों में उत्सव मनाया। पंडितों को बुलवाकर बालक का नामकरण करवाया। वो बालक कितना भाग्यशाली है ये जानने के लिए राजा ने अपने दरबार में बड़े बड़े विद्वान ज्योतिषियों को बुलाया। ज्योतिषियों ने जब बालक की कुंडली देखी तो बालक के भाग्य को देखकर वे सारे ज्योतिष चिंतित हो गए। राजा ने पूछा हे ज्योतिषी ब्राह्मणों आप लोग क्या सोचकर चिंतित हो? तब ज्योतिषियों ने बताया महाराज आपका पुत्र आपके पास सिर्फ पंद्रह वर्ष तक ही रहेगा यही बात उस महात्मा ने भी बताई थी ज्योतिषियों ने उस बात पर मोहर लगा दी अब तो राजा और रानी सुनकर बड़े उदास हुए फिर भगवान की इच्छा समझकर उस बालक का पालन पोषण करने लगे वे दोनों सोचते थे कि संतानहीन होने से तो अच्छा है कि पंद्रह साल के लिए संतान का सुख मिल जाए उन्होंने पालने पोसने में लाड़ प्यार देने में कोई कमी नहीं छोड़ी राज परिवार में पल कर वो बालक बड़ा होने लगा धीरे धीरे वो बालक पाँच साल का हो जाता है तब राजा साहब एक विद्वान आचार्य से उस बालक की शिक्षा कराते है उसे वेद शास्त्रों का अध्ययन कराते है अनेकों विद्याओं का उसे अभ्यास कराते है धीरे धीरे राजकुमार शास्त्र में ध्यान में निपुण हो गया धीरे धीरे करके राजकुमार बारह वर्ष की आयु में पहुँच जाता है तब उसी समय महाराज एक अच्छी सी राजकन्या को तलाश करके अपने राजकुमार की बड़ी हंसी खुशी के साथ शादी कर देते हैं इधर राजकुमार की अवस्था चौदह साल की हो जाती है तब एक दिन राजकुमार अपने पिता से बोला पिताजी मैं अपने पूरे राज्य में घूम कर देखना चाहता हूँ अपने राज्य का भ्रमण करना चाहता हूँ अब तक मैं अपने राजमहल से निकल कर कहीं बाहर नहीं गया हूँ पुत्र की बात सुनकर राजा चिंतित हो जाता है क्योंकि इधर राजकुमार का चौदहवां साल जो था वो शुरू हो चुका था अब बड़ी अनहोनी होने का जो डर था वो नजदीक चूका था। राजा ने ये सब बातें अपने पुत्र के लिए नहीं बताई थी। तब राजा अपने चेहरे पर झूठ मुठ की खुशी लाकर अपने पुत्र से कहता है हाँ बेटा तुम जरूर जाओ तुम्हें अपना राज्य घूम करके जरूर देखना चाहिए। अपने राज्य में भ्रमण करना चाहिए और अपने राज्य की प्रजा का दुख सुख देखना चाहिए। आखिर तुम्हारे राज्य में जनता खुश है या नहीं है और तुम्हें देखना चाहिए आखिर तुम्हारे राज्य का हिस्सा कहाँ तक है कहाँ पर कौन व्यक्ति निवास करता है इन सब बातों की एक राजा के लिए होनी चाहिए। क्योंकि बेटा मेरे मरने के बाद में तुम्हे ही इस राज्य को संभालना है। तुम्हे ही इस राज्य का राजा बनना है। लेकिन बेटा एक बात ध्यान रखना तुम जहाँ जा रहे हो जो देखोगे जो करोगे उसके बारे में अपनी पत्नी को मत बताना। तब वो बेटा कहता है, ठीक है पिताजी, आप जैसा बताओगे, मैं वैसा ही करूँगा। इस प्रकार से बंधुओं राजकुमार पूरे दिन अपनी पत्नी के साथ रहता है, उसके साथ हंसी, दिल्लगी करता है, प्रेम भरी बातें करता है और खुशियों के पल एक दूसरे के साथ बिताकर रात्रि के समय ठीक बारह बजे बिस्तर से उठकर महल से बाहर चला जाता है और सुबह होने से पहले वापस लौटकर पुनः अपने महल में अपने पलंग पर आकर सो जाता है इसी प्रकार से बहुत दिनों तक चलता रहा अब उस राजकुमार की चौदहवीं साल पूरे होने में कुछ ही दिन शेष बचे थे एक रात उसकी पत्नी यानी की छोटी रानी रात्रि में जब जागती है तो वो देखती है कि हमारे राजकुमार हमारे पतिदेव आज पलंग पर नहीं है पति को आकर वो व्याकुल हो जाती है और पूरे महल में उन्हें ढूंढती है लेकिन वो राजकुमार कहीं भी नजर नहीं आया। राजकुमारी बड़ी ही हताश और निराश हो जाती है, अब मैं क्या करूँ? राजकुमारी मन में सोचती है, भला अब मैं क्या करुँगी? वो सोचती है कि मेरा पति मुझे बिना बताए कहाँ चला गया, उसने इस बात की चर्चा किसी से नहीं की, वो चुप रहती है, लेकिन सुबह होने पर वो देखती है, कि उसका पति अपने बिस्तर पर सोया हुआ है, तब राजकुमारी अपने पति से रात की घटना के बारे में कुछ नहीं पूछती है। बंधुओं इधर रात के लिए भी वैसा ही होता है। कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। रात्रि में रोजाना राजकुमार गायब हो जाता था। ये देखकर उसकी पत्नी बहुत ज्यादा चिंतित रहने लगी। वो सोचने लगी आखिर मेरा पति रात्रि के समय में कहाँ जाता है, आखिर किससे मिलने के लिए जाता है और उसका इतना प्रिय कौन है? जो उससे मिलने के लिए आंधी रात के समय जाता है। दर्शक बंधुओं इसी प्रकार से राजकुमारी के मन में ढेर सारे सवाल चल रहे थे। लेकिन राजकुमार से पूछने में उसे बहुत ज्यादा डर लगता था। अपने सास और से उसने पूछने की सोची लेकिन उसके बीच में उसकी कुल और मर्यादा आ जाती थी तो इस प्रकार से वो राजकुमारी सोच सोच कर मन ही मन घुटती रहती थी इसी बात को लेकर वो इतनी चिंतित रहने लगी कि उसका कुछ खाने पीने को भी मन नहीं करता था धीरे धीरे राजकुमारी दुबली पतली होती चली गयी उसका शरीर सूखने लगा क्योंकि राजकुमारी हर समय अपने पति की चिंता में डूबी रहती थी एक स्त्री के लिए पति का दुख बहुत बड़ा दुख होता है उसी राज्य में एक फूल बेचने वाली बूढ़ी मालिन रहती थी वो हमेशा छोटी रानी के लिए गजरे के लिए फूल देने के लिए आया करती थी तब उस बुढ़िया का ध्यान छोटी रानी पर जाता है। वो मालिन आकर पूछती है, बेटी, आखिर क्या परेशानी है, तुम पर क्या दुख है? तुम इतनी कमजोर क्यों होती जा रही हो? तुम्हारा शरीर सुख करके अब कांटा होता जा रहा है। मित्रों, उस बूढ़ी मालिन के पूछने पर राजकुमारी कहती है, हे बूढ़ी माँ, आखिर मैं तुम्हें क्या बताऊं? मेरा राज हर रात बिस्तर से उठकर ना जाने कहाँ चला जाता है और सुबह होते ही वो वापस आकर बिस्तर पर सो जाता है। आखिर वो कहाँ जाता है इस बात को सोचकर मैं बहुत परेशान रहती हूँ इसी बात की वजह से मेरा खानपान छूट गया है। मैं अन्न जल कुछ नहीं ग्रहण करती और इसी परेशानी की वजह से मैं सुख-सुख कर काटा बन चुकी हूँ। राजकुमारी की पूरी बात सुनने के बाद मालिन राजकुमारी को एक उपाय बताती है कि बेटी तुम ऐसा करना आज पूरी रात भर तुम सोना मत तुम रात भर जागती रहना और जब राजकुमार कहीं कोई जाने लगे तो तुम राजकुमार के पीछे-पीछे जाकर देखना कि वो कहाँ के लिए जाता है और किससे मिलता है और क्या करता है? आज रात्रि में जाकर तुम अच्छी तरह से अपने पति की पहरेदारी करना, तब राजकुमारी कहती है, हे बूढ़ी माँ, यदि मुझे नींद आ गई तो फिर मैं क्या करुँगी? तब मालिन कहने लगी, हे राजकुमारी तुम्हें नींद ना आए, इसीलिए तुम ये काम करना अपने सीधे हाथ की उंगली में एक जख्म बना लेना, उसमें थोड़ा सा नमक लगा लेना, उस नमक से तुम्हें पीड़ा होती रहेगी और उस पीड़ा की वजह से तुम्हें रात भर नींद नहीं आएगी। दर्शक बंधुओं राजकुमारी बोली, ठीक है माँ, मैं ऐसा ही करूंगी। मित्रों, उस रात राजकुमारी अपनी ऊँगली में जख्म बना लेती है और उसमें नमक लगा लेती है, उसकी ऊँगली में भयंकर पीड़ा होती है, पीड़ा की वजह से उसे रात भर नींद नहीं आती, लेकिन सुबह के समय जब पीड़ा शांत हो जाती है, तो राजकुमारी फिर सो जाती है, दूसरे दिन फिर वो मालिन फूल लेकर राजकुमारी के महल में पहुँचती है और जाकर के पूछ है बेटी क्या तुम अपने पति के लिए देख पाई? आखिर तुम्हारा पति कहाँ जाता है तो राजकुमारी जवाब देती है। नहीं बूढी माँ मैं पीड़ा की वजह से आंधी रात तक तो जागती रही। पीड़ा शांत होने पर मैं सो गई। मुझे नहीं पता कि मेरा पति कहाँ चला गया। तब बूढी माँ कहती है बेटी, कोई बात नहीं, आज तुम अपनी ऊँगली पर पहले से थोड़ा जख्म ज्यादा बना लेना और ज्यादा से ज्यादा नमक लगाना दर्शक बंधुओं, दूसरे दिन उसी तरह से राजकुमारी रात में जागने का प्रयास करती है, दूसरी रात भी वो अपने पति को ठीक से नहीं देख पाई, उसने अपने पति को दरवाजे तक तो जाते हुए देखा, उसके बाद उसकी आँखें बंद हो गई। वो अपने पति के पीछे नहीं जा सकी। अगले दिन वो मालिन के आगे रोने लगी। कहने लगी, हे माँ, आज मैं अपने पति की चौकसी करने में फिर नाकाम रही। तब मालिन उसे धीरज बंधाती है कि बेटी तू दुखी मत हो, भगवान तेरी मदद अवश्य करेंगे, तुम आज रात्रि के लिए अपने हाथ में जख्म और बड़ा बना लेना और उस पर कल से भी ज्यादा नमक छिड़कना। जब तुम्हारा पति रात्रि के समय तुम्हारे पलंग से उठ करके महल से बाहर जाने लगे, तो उसी समय पर अपने पति का रास्ता रोक कर अपने पति से पूछना कि तुम कहाँ जा रहे, दर्शक बंधुओं उस बूढी माँ ने जैसा बताया था, राजकुमारी ने अगली रात वैसा ही किया.

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आज रात राजकुमारी के लिए बिल्कुल भी नींद नहीं आई, जब राजकुमार आंधी रात के समय महल से बाहर निकल कर जाने लगा. तो वो राजकुमारी दौड़कर उसका रास्ता रोक लेती है और पूछती है कि आप कहाँ जा रहे हो? और आप रात्रि के समय किससे मिलने जाते हो? आखिर ऐसा क्या काम है जो रात्रि के समय तुम जाकर करते हो? आज तुम्हें ये बात मुझे बतानी ही होगी.

राजकुमारी के बार-बार पूछने पर राजकुमार कहता है, हे प्रिय! ये रहस्य मैंने तुम्हें बता दिया तो मैं तुम्हें दोबारा देखने को नहीं मिल पाउँगा तब राजकुमारी कहने लगी कोई बात नहीं ना मिल पाए सही लेकिन आप आधी रात के समय कहाँ जाते हो ये बात मुझे जरूर बताओ राजकुमारी की बात को सुनकर के राजकुमार बिल्कुल मजबूर हो जाता है इधर राजकुमार की चौदहवीं साल पूरी हो चुकी थी पंद्रहवीं वर्ष लग गई थी राजकुमार मन में सोचने लगा अब भगवान की कृपा से जो होने के लिए है वो हो जाने दो यही सोच के वो कुछ अनाज के दाने मंत्रों से सिद्ध करने के बाद में अपनी पत्नी के हाथों में रखता है और कहता है हे राजकुमारी तुम इस अनाज को दोनों हाथों की मुट्ठी में पकड़ लो पहले सीधे हाथ के अनाज को तुम मेरे ऊपर फेंकना फिर उसके बाद में तुम्हें पता चलेगा कि मैं कौन हूँ इसके बाद तुम अपने डेढ़ हाथ में उसके बाद तुम अपने डेढ़ हाथ का अनाज मेरे ऊपर फेंक देना तब मैं उसी समय जैसा था ठीक वैसा ही हो जाऊँगा अगर तुम डेढ़ हाथ की मुट्ठी का अनाज मेरे ऊपर फेंकना भूल गयी तो फिर मैं तुम्हें कभी मिल नहीं पाउँगा। मित्रों इसके बाद में राजकुमारी पहले अपनी सीधी मुट्ठी का अनाज उस राजकुमार के ऊपर फेंकती है, तो देखती क्या है कि वो राजकुमार एकदम से एक बहुत सुंदर सफ़ेद घोड़ा बन जाता है और देखते ही देखते राजकुमार तेज़ी से दौड़ लगाने लगता है। इधर राजकुमारी उस घोड़े को ध्यान से देखने लगी और वो ये भूल जाती है कि राजकुमार ने मुझसे डेढ़ हाथ के अनाज को मेरे ऊपर फेंकने को कहा था। राजकुमारी उस घोड़े को देखने में लगी रहती है, तब तक वो राजमहल के चारों और चक्कर लगाने के बाद वहाँ से चला जाता है। और उसकी आँखों के सामने से एकदम से गायब हो जाता है। जब घोड़ा महल से बाहर चला जाता है तो राजकुमारी उसके लौटने का इंतजार करती है लेकिन राजकुमार घोड़ा बनकर चला गया वो लौटकर नहीं आया। अब राजकुमारी को अपनी करनी पर बड़ा पछतावा होता है। राजकुमारी स्वयं के लिए कोसने लगती है, स्वयं के लिए भला बुरा कहती है, लेकिन अब उस बात का कोई लाभ नहीं था क्योंकि राजकुमार भी अब वापस लौटकर आने वाला नहीं था। बंधुओं इधर होते ही राजा और रानी के लिए राजकुमारी ये घटना बताती है सुनकर उन्हें इस बात पर बड़ा ज्यादा दुःख होता है वे बहुत अधिक पश्चाताप करते है राजा साहब समझ चुके थे कि हमें जिस बात का डर था वो अनहोनी घटना घट गयी और अब तो राजा बेचारे चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे राजा साहब बड़े दुखी होकर अपने बिस्तर को पकड़ लेते है और राह देखते रहते है कि शायद किसी दिन हमारा राजकुमार लौटकर हमारे राजमहल के लिए वापस आ जाए इंतजार करते करते तीन माह का समय बीत गया लेकिन राजकुमार कर नहीं आया इसी तरह पूरी साल बीत गई लेकिन राजकुमार नहीं लौटा उस राजकुमार का कोई अता-पता भी नहीं लग रहा था कि आखिर वो कहाँ है राजा ने अपने सिपाहियों को भेजकर पूरे राज्य के नगर में और गाँव को छनवा लिया परंतु कहीं भी राजकुमार का कोई पता नहीं चला इधर राजकुमारी मन ही मन बड़ी दुखी होती है कि उसकी व्यर्थ की जिद के कारण उसका पति गायब हो गया राजकुमारी अपने मन में ये प्रण कर लेती है कि वो कुछ ना कुछ करके अपने पति को पाकर ही रहेगी और एक दिन उसे घर वापस लेकर के जरूर आएगी राजकुमारी सुबह कर अपने सास ससुर के पास में जाती है और अपने सास, ससुर, राजा और रानी से कहती है कि मैं अपने पति की खोज करने के लिए राज्य से बाहर जा रही हूँ मुझे आज्ञा दे दो राजा और रानी भी यही चाहते थे कि उनका बेटा मिल जाए, यही सोच कर उन्होंने अपने पुत्रवधू को जाने की आज्ञा दे दी और कहा पुत्री तुम जो चाहो सो करो तुम्हे जहाँ जाना है वहाँ जाओ लेकिन हमारे पुत्र को वापस लेकर जरूर लौटना हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है मित्रों बाद में राजकुमारी एक साधारण स्त्री का भेष बनाती है और अपने कुछ नौकर चाकरों को दास दासियों को साथ लेकर कुछ जरुरी खाने पीने का सामान रखकर अपने पति को खोजने के लिए निकल पड़ती है। राजकुमारी ने राज्य की सीमा पर जाकर खाने पीने का एक भोजनालय खोल लिया। तब राजकुमारी वही राज्य की सीमा पर वहाँ से आने जाने वाले यात्रियों को मुफ्त में खाना खिलाती थी। और उसके यहाँ भोजनालय में जो लोग खाना खाने आते थे उनके सामने एक शर्त रखती थी कि खाना खाने से वो अपने जीवन में घटी कुछ विचित्र घटनाओं को जरूर सुनाए उसके बाद ही भोजन करे अब तो राजकुमारी के भोजनालय पर सैकड़ों यात्री भोजन करने आते है और अपने जीवन में घटी हुई विचित्र घटनाओं को सुनाते है और भोजन करते चले जाते है परंतु राजकुमारी के लिए जिस बात की तलाश थी वो अब तक उसे सुनने को नहीं मिली थी धीरे धीरे इस प्रकार कई दिन बीत गए इसी दौरान एक घटना और घटती है जो रानी के महल में बूढी मालिन रहती थी राजकुमारी के लिए फूल लाती थी उस मालिन का बेटा और बहु थे, उनका एक छोटा सा बच्चा था। उन बूढी माँ का बेटा और बहु सुबह काम के लिए कहीं चले जाते थे, तो वे अपने बेटे को संभालने के लिए ये जिम्मेदारी अपनी माँ को सौंप जाते थे। क्योंकि वो बूढी माँ घर पर अकेली रहती थी। उसके बहु-बेटा तो काम पर चले जाते थे और रोजाना वो बूढी माँ अपने पोते को खिलाया करती थी। मित्रों, वो बूढी माँ पान खाया करती थी। एक दिन बूढी माँ ने अपने थैले में हाथ डालकर देखा तो उसने देखा कि उसके थैले में पान नहीं है। बूढी माँ को पान बहुत तलब लगने लगी बूढी माँ ने सोचा अगर मैं पान नहीं खाऊँगी तो मेरा दिन कैसे कटेगा बुढ़िया से जब रहा नहीं गया पान खाए बिना तो उसने सोचा कि चलो अभी तो मेरा पोता खेल रहा है मैं पड़ोस में जाकर किसी दूकान से पान ले आती हूँ यही सोच कर के वो बूढ़ी माँ पड़ोस की दुकान पर पान लेने चली गयी जब बूढ़ी माँ पान लेने के लिए गयी थी तो पान लेकर के लौटते उसे देर हो गयी तब तक इधर बूढ़ी माँ की बहु और बेटा शाम होने पर घर वापस आ चुके थे तो उन्होंने कि उनका बच्चा घर पर अकेला है और वो रो रहा है। अपने बच्चे को अकेला देखकर बेटा और बहु एकदम गुस्से में आकर लाल पीले हो गए और बूढ़ी माई के लिए मन ही मन भला बुरा कहने लगे। दर्शक बंधुओं तब तक वो बूढ़ी माँ पड़ोस की दुकान से पान लेकर घर पर आ गई तब बूढ़ी माई के बेटे ने पूछा माँ आखिर तुम हमारे बच्चे को छोड़कर कहाँ गई थी? तब बूढी माँ कहने लगी, बेटा में पड़ोस की दुकान पर पान लेने गई थी। इस पर बूढ़ी माँ का लड़का क्रोध में आकर कहने लगा, हे माँ आज के बाद तुम को घर पर अकेला छोड़कर नहीं जाओगी। तब बूढी माँ कहती है, ठीक है बेटा, आज के बाद मैं इसे छोड़ कर नहीं जाऊँगी। दर्शक बंधुओं दूसरे दिन के लिए वो बूढ़ी माँ उस बात को भूल जाती है और फिर से पड़ोस की दुकान पर पान लेने चली जाती है। पहले दिन की तरह उसके बहु, बेटा जब काम करके वापस लौटे, तो घर पर आकर देखते हैं, कि फिर से उनका बच्चा घर पर अकेला खेल रहा है और रो रहा है। अब तो ये दृश्य देखकर बुढ़िया के बेटे की क्रोध की सीमा ना रही। इधर से बुढ़िया पर लौट कर आयी तो उसके लड़के ने उसे डांट फटकार कर घर से बाहर निकाल दिया और घर का द्वार बंद कर लिया बुढ़िया रात में घर के बाहर बैठी अकेली रोटी रही जब उनके बहु और बेटे ने दरवाजा नहीं खोला तो बुढ़िया रात के अंधेरे में वहाँ से आगे को जाने लगी अँधेरा होने की वजह से रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा था वो धीरे धीरे जंगल की ओर बढ़ती चली जा रही थी तभी उसने देखा कि एक कपला गाय छम छम करती हुई सामने से आ रही है गाय को देखकर सोचा अगर मैं इस गाय के पीछे-पीछे जाऊंगी तो ये गाय मुझे किसी गांव में पहुंचा देगी यही सोच कर के वो बूढ़ी माँ उस गाय के पीछे-पीछे चलने लगी गाय धीरे-धीरे आगे को बढ़ती जा रही थी कुछ दूर आगे जाने पर गाय एक बड़े से पत्थर के पास में जाकर रुक जाती है वो उस पत्थर को अपने सींग से हटाती है पत्थर के उस स्थान से हटते ही वहां पर एक पाताल में जाने का रास्ता खुलता था वो गाय उस रास्ते से जमीन के अंदर जाने लगती है बूढी माँ ये दृश्य अपनी आंखों से देख रही थी बूढ़ी माँ ने पीछे से उस गाय की पूंछ पकड़ ली बूढी माँ भी उस साथ चलने लगी। पाताल लोक में पहुँचते ही उस बूढ़ी माँ ने गाय की पूंछ तो छोड़ दी और वो इधर-उधर देखने लगी। पाताल लोक का नजारा देखकर बुढ़िया एकदम चकित रह गई। उसने देखा कि वहाँ जगह-जगह अनेक दीपक चल रहे थे। मरिया टिमटिमा रही थी। उनसे अनेक प्रकार की रोशनी निकल रही थी। तभी थोड़ी सी रोशनी उस गाय पर पड़ती है। बुढ़िया देखती है कि वहां पर एक अद्भुत घटना घटती है। एक जंजीर आती है और गाय के गले में पड़ जाती है। उसी समय पर एक अदृश्य व्यक्ति आता है और वो उस गाय को दोहने लगता है, वो व्यक्ति गाय को तो दोहरा था, पर दिखाई नहीं दे रहा ये दृश्य देखकर बूढ़ी माँ घबरा जाती है। बूढी माँ मन में सोचती है, आखिर मैं आज कहाँ फंस गई? बूढ़ी माँ वहाँ छुपने के लिए कोई स्थान ढूंढती है, मगर उन्हें वहाँ कोई छुपने के लिए स्थान नहीं मिलता है, बूढ़ा सोचते सोचते यहाँ वहाँ ढूंढ़ते ढूंढ़ते, एक कोने में जाकर छुप गई और वहाँ का नजारा देखने लगी, कुछ समय के बाद वहाँ पर एक सुंदर सा भूरा घोड़ा आता है, और वहाँ पर दो कुंड बने हुए थे, उनमें से एक कुंड में घोड़ा कूद पड़ता है, कुंड में कूद कर जब वो घोड़ा बाहर निकलता है, तो वो सुंदर राजकुमार बन जाता है, राजकुमार बनने के बाद में उसने दूसरे कुंड में स्नान किया और वहां पर रखे हुए अपने नए वस्त्र पहने और थोड़ी दूर पर एक पलंग बना हुआ था वो राजकुमार उसी पलंग पर जाकर बैठ जाता है, फिर उसके सामने अचानक से एक सुंदर भोजन की थाली आती है, वो राजकुमार उसके बाद में आकर के उसी पलंग पर बैठकर भोजन करता है। मित्रों राजकुमार के कक्ष में एक तोता रहता था, वो तोता भी बड़ा सुंदर था, वो राजकुमार के सामने आकर बैठ जाता है, तब वो उस तोते से पूछता है, हे तोता तुम मुझे ये बताओ कि मेरे माता-पिता पृथ्वी पर क्या कर रहे हैं? तब वो तोता राजकुमार को बताता है, कि हे राजकुमार पृथ्वी लोक पर आपके माता-पिता इस समय बहुत दुखी है, वे अपने बेटे को लेकर बड़े चिंतित रहते हैं? तब राजकुमार पूछता है, हे तोता, इस समय हमारे राज्य की देखभाल कौन कर रहा है? और हमारी पत्नी क्या करती है? तब तोता राजकुमारी के बारे में बताता है कि आपकी पत्नी राजकुमारी ने राज्य की सीमा पर एक भोजनालय खोल लिया है और आपके पिताजी बूढ़े हो गए हैं, इसलिए आपके राज्य की देखभाल आपका प्रधानमंत्री करता है और वहाँ आपकी पत्नी भोजनालय खोलकर वहाँ आने जाने वाले यात्रियों से जो भोजन करने आते हैं उनसे नई-नई खबर पूछती रहती है और उन्हें भोजन कराती है। मित्रों इतना पूछने के बाद में वो राजकुमार अपनी सैयां पर सो जाता है। इधर वो बूढी मालिन कोने में खड़ी खड़ी ये दृश्य देख रही थी। बूढी माँ ने ऐसी घटना जिंदगी में कभी नहीं देखी थी वो अपनी भूख प्यास सब भूल चुकी थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ इस प्रकार से पूरी रात निकल जाती है, सुबह होने पर वो राजकुमार फिर से घोड़ा बनकर चला जाता है और वो घोड़ा कहाँ उस बूढ़ी माँ के लिए इस बात का पता नहीं था। घोड़े के जाने के बाद में वो गाय भी एकदम से तेज़ी से पाताल लोक से बाहर निकलने के लिए आती है। तब बूढ़ी माँ ने सोचा इस गाय के साथ मैं पाताल लोक में आ गई हूँ, तो गाय के साथ ही मुझे बाहर जाना चाहिए, नहीं तो पता नहीं कौन सी अनहोनी मेरे साथ घट जाए। गाय को दौड़ते हुए देख, बुढ़िया माई ने भी गाय के पीछे-पीछे सीध लगा ली और झपटकर उसकी पूंछ पकड़ ली। गाय के साथ बूढ़ी माँ पृथ्वी पर आ जाती है, वो सुरंग का रास्ता फिर से उसी पत्थर से बंद हो जाता है गाय तो जंगल की ओर चली जाती है और इधर बूढी माँ उस दृश्य को देखकर एकदम बावली सी हो गयी थी उसने पाताल लोक में जो कुछ देखा था वो सब कुछ बूढ़ी माँ किसी को बताने के लिए उतावली हो रही थी तब उसी समय पर बूढ़ी के लिए एकदम से याद आया कि हमारे राज्य की सीमा पर कोई राजकुमारी भोजनालय चलाती है और नई नई बात बताने वाले व्यक्ति के लिए राजकुमारी अच्छा अच्छा भोजन करवाती है वो बूढी सोचने लगी किसी और को बताने से तो अच्छा है क्यों ना मैं ये बात जा करके उस राजकुमारी को बताऊँ मेरी बात उस राजकुमारी के लिए पसंद आ गयी उसके समझ में आ गयी तो मुझे आज के बाद खाने पीने की कोई चिंता नहीं रहेगी यही सोच कर बूढी माँ उस राजकुमारी के भोजनालय पर पहुँच जाती है भोजनालय के द्वार पर एक ढोल रखा हुआ था बूढी माँ ने तुरंत जाकर उस ढोल को बजा दिया ढोल की आवाज सुनकर राजकुमारी ने सोचा कि आज कोई मुझे बहुत बड़ी बात बताने आया है राजकुमारी ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि जाइए आज भोजनालय पर कोई अतिथि आया है, उसकी जाकर खातिर खुशामद कीजिए। मित्रों इधर राजकुमारी का आदेश पाते ही सिपाही दौड़ कर उसी जगह पर पहुंच जाते हैं, जहां बूढ़ी माँ खड़ी थी। उन्होंने देखा कि एक बूढी माँ ढोल बजा रही है, सिपाहियों ने पूछा, हे माँ, ये ढोल क्यों बजा रही हो? तब बूढ़ी माँ कहती है, बेटा हमने सुना है कि यहाँ भोजनालय पर मुफ्त भोजन मिलता है, इसीलिए आपके भोजनालय पर आई हूँ, तब सिपाहियों ने दिया ये बूढ़ी माँ तुम्हें भोजन तो मिल जाएगा लेकिन उसके लिए तुम्हें कोई नई बात बतानी होगी तब बूढ़ी माँ कहती है हाँ बेटा मैं एक बहुत ही नई बात जानती हूँ जिसे तुम सुनोगे तो दंग रह जाओगे बुढ़िया की बात सुनकर सिपाहियों ने ये बात राजकुमारी को बताई कि बूढ़ी माँ द्वार पर खड़ी है और वो कोई नई बात बताना चाहती है राजकुमारी ने सिपाहियों को आदेश दिया कि जो बुढ़िया यहाँ पर आई है उसके साथ अच्छा व्यवहार करना उसका खूब आदर सत्कार करना मित्रों का आदेश पाते ही सिपाही लोग उस बूढी माँ की सेवा में जुट जाते हैं। सुंदर सुंदर पकवानों से भरी हुई थाली उसके आगे रख देते हैं। बूढी माँ कई दिनों से भूखी थी। आज उसने स्वादिष्ट भोजन देखा तो वो खाने लगी और खूब पेट भर के भोजन किया। भोजन करने के बाद सिपाही उस बूढी माँ को राजकुमारी के पास ले जाते हैं, राजकुमारी ने उसे बूढी माँ को देखते ही पहचान लिया। राजकुमारी को देखकर बूढ़ी माँ को भी आश्चर्य हुआ कि पुत्री तुम यहाँ कैसे? उसके बाद राजकुमारी पूछता की है माँ तुम मुझे कौन सी नई बात बताना चाहती थी? मुझे बताओ मित्रों पहले तो बूढी माँ राजकुमारी को वो बात बताना चाहती थी लेकिन राजकुमारी ने बार बार आग्रह किया की हे माँ यदि तुमने ऐसी बात देखी है तो मुझे जरूर बताओ मैं तुम्हारी जीवन भर सेवा करुँगी तुम्हे अपने महल तुम्हे अपने राजमहल में ले जा कर के रानी माता की तरह रखूंगी मित्रों राजकुमारी के मुख से ये बात सुनकर बूढी माँ बहुत प्रसन्न होती है और उन्होंने पाताल लोक में जो कुछ भी देखा था वो सब राजकुमारी बता दिया। बूढ़ी माँ की बात सुनकर राजकुमारी को विश्वास हो गया कि बूढ़ी माँ ने जो कुछ भी देखा है वही मेरा पति है तब राजकुमारी बूढी माँ से कहती है कि हे माँ आपने जो कुछ जहाँ देखा है कृपया मुझे भी वहीं ले चलिए। तब बूढ़ी माँ समझाने लगी बेटी मैंने जो घटना देखी है वो पाताल लोक की घटना है मैं तो वहाँ से जैसे तैसे करके निकल आयी अगर तुम वहाँ जाओगी तो तुम्हारी जान खतरे में पड़ जाएगी। राजकुमारी ने बूढ़ी माँ की एक भी बात नहीं सुनी। वो बार-बार वहाँ का हठ करने लगी। आखिर में राजकुमारी का कहना बूढी माँ मान लेती है और कहने लगी ठीक है बेटा तुम नहीं मानती हो तो आज मैं तुम्हें वहाँ लेकर के चलती हूँ पर बेटी आज नहीं कल मैं तुम्हें वहाँ लेकर के जरूर चलूँगी मैं बहुत थक चुकी हूँ मित्रों अगला दिन होता है और शाम होती है तो अगले दिन राजकुमारी उस बूढ़ी माँ के साथ में उसी जगह पर पहुँची जहाँ एक पत्थर रखा हुआ था थोड़ी देर में वो गाय आती है और गाय अपने सिंह से उसे पत्थर को हटाती है मित्रों पत्थर ही पाताल लोक का रास्ता खुल गया। गाय उस रास्ते से पाताल के अंदर जाने लगी। बूढ़ी माँ के कहने पर राजकुमारी ने उस गाय की पूँछ पकड़ ली और गाय की पूंछ पकड़ कर वो पाताल में चली गई, बूढ़ी माँ पिछली बार की तरह एक कोने में छुपकर खड़ी हो जाती है और दोनों उसी कोने से पाताल का नजारा देखने लगती है और पाताल लोक में सब कुछ पहले की तरह घटित हो रहा था, थोड़ी देर में एक सफेद घोडा आता है और वो उस कुंड में छलांग लगाता है, घोड़े से वो राजकुमार बन जाता फिर दूसरे कुंड में स्नान करके सुंदर वस्त्र पहनता है और अपनी सैयां पर जाकर बैठ जाता है राजकुमार सोने से पहले सूर्य देवता का आवाहन करता था आज भी उसने सूर्य देवता का आवाहन किया उसके बाद राजकुमार उस तोते से बात करने लगता है तोते से पूछता है हे तोता पृथ्वी पर मेरे माता पिता क्या कर रहे है आज तो वो तोता राजकुमार को कोई बात नहीं बताता है जैसे जैसे राजकुमार तोता से पूछता है तोता अपना सिर झुका लेता है जब तोता कुछ नहीं बताता है तो राजकुमार को संदेह होने लगता है कि जरूर वहाँ कुछ ठीक नहीं हो रहा है। मित्रों उसी समय पर राजकुमार के लिए संदेह होने लगा। राजकुमार ने तोते से बात करना बंद कर दिया और अपने बिस्तर पर सो गया। इधर बूढी माँ और राजकुमारी ये दृश्य देख रही थी। राजकुमारी का संयम छूटता जा रहा था। वो एकदम से भाग कर अपने पति के पास पहुंची, जो की राजकुमार के रूप में उस पलंग पर लेटा हुआ था। राजकुमारी अपने पति के पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ती है, तो राजकुमार अपनी पत्नी को देखकर पहचान लेता है, वो एकदम से पीछे हट गया और चिल्लाने लगा, नहीं राजकुमारी, तुम मत छूना वरना सर्वनाश हो जाएगा। तभी उसी समय पर राजकुमारी अपने दोनों हाथों को जोड़ कर के राजकुमार से अपनी भूल पर अपनी करनी पर पश्चाताप करती है, क्षमा मांगती है। राजकुमारी कहने लगी, हे स्वामी मुझसे बड़ी भूल हो गई थी, मुझे उस समय आपसे वो बात नहीं पूछनी चाहिए थी कि आप रात में कहाँ जाते हैं? इसीलिए हे प्यारे, आज मैं अपनी गलती पर पछता रही हूँ और अपनी भूल स्वीकार करती हूँ। राजकुमार मुझे मेरी भूल की सजा मिल चुकी है, अब कृपया कर आप मेरे साथ घर चलिए। आपकी चिंता करते करते आपके माता पिता ने अन्न जल भी ग्रहण करना छोड़ दिया है। उनका शरीर सुख कर काँटा हो चुका है। आपके बिना आपकी प्रजा भी बहुत दुखी रहती है, तुम्हारे बिना राजकुमार सारे नगर के लोग बड़े परेशान रहते हैं, आपके बिना आपकी प्रजा खुशहाल नहीं है, वो बहुत अधिक दुख भोग रही है। तब राजकुमार कहने लगा तुम बहुत बड़ी गलती कर बैठी हो। अब दोबारा गलती मत करना, नहीं तो जो तुम्हें दिखाई दे रहा हूँ फिर मैं कभी तुम्हें दिखाई भी नहीं दूँगा। राजकुमार की बात सुनकर राजकुमारी जोर-जोर से रोने लगती है, थोड़ी देर बाद राजकुमार के मन में कुछ दया आती है, राजकुमार कहता है, हे प्रिय यदि तुम मुझे वापस पाना चाहती हो तो तुम्हें एक काम करना होगा और ये काम बड़ा कठिन है, इस काम को तुम्हें अकेले ही करना पड़ेगा। रानी ने जवाब दिया, कहिए स्वामी चाहे तुम्हारे लिए कितना भी कठिन काम हो मैं वो काम अवश्य करुँगी मित्रों, इसके बाद में कुमार ने उसे बताया कि हे राजकुमारी इस पाताल से ऊपर जाते ही तुम्हें एक बहुत बड़ा घना जंगल नजर आएगा और ऐसे छह जंगल पार करके सातवां जंगल जब मिलेगा, उस जंगल में वो जंगल सबसे ज्यादा घना होगा। उस जंगल के बीचों-बीच में एक पीपल का वृक्ष है, उसके आस-पास की जगह के तुम पत्ते, झाड़ियों को तुम काट कर फेंक देना। और उस जगह को साफ-सुथरा कर देना, उस वृक्ष के पास में अनेकों प्रकार के प्राणियों की सभा लगती है। शेर, चीता, भालू, बंदर, अनेकों पशु, भी वहां पर रहते हैं, उन समस्त जानवरों को वहां से भगाकर तुम उस जगह को साफ कर देना, उसको गोबर से लीप पोत देना और गंगाजल से पवित्र कर देना। फिर तुम वहां पर बहुत सुंदर रंगोली बनाना, फिर उस जगह पर बैठकर पूजा पाठ करना, फिर उसके बाद में उस वृक्ष की भी पूजा करना, ये काम तुम्हे दोपहर से पहले करना है। दोपहर से पहले ही तुम्हे उस जगह पर बैठकर सूर्य नारायण का आवाहन करना है। उनका जप करना है। दोपहर से पहले उस स्थान पर सूर्य उतरेंगे तब भगवान सूर्यदेव उस जगह को देखकर प्रसन्न हो जाएँगे और कहेंगे कि जिस किसी ने भी ये सब किया है उस व्यक्ति को मैं मन चाहा वरदान दूँगा तो तुम सूर्य देवता से उनके रथ का दाहिना घोड़ा माँग लेना और Surya देव जब हाँ कह दे उसके बाद मैं तुम्हें मिल जाऊँगा दर्शक बंधुओं इतनी बात कहने के बाद राजकुमार अपने ही पलंग पर सो गया और इधर रानी भोर होने की राह देखने लगी भोर होते ही वो बुढ़िया के साथ में गाय की पूँछ पकड़ कर लोक से बाहर आ गई। ऊपर आने के बाद में राजकुमारी बूढी माई से कहने लगी, अम्मा, अब मैं यहाँ से अकेले ही आगे के लिए जाऊँगी, अब तो मैं ऐसा करो, जहाँ पर मेरा भोजनालय है, तुम वहाँ चली जाओ। मित्रों इधर राजकुमारी आगे के लिए चल देती है और कई जंगलों को पार करती हुई वो सातवें जंगल में पहुँच जाती है, जो राजकुमार ने बताया था, और किसी तरह से राजकुमारी वहाँ पर रहने वाले शेर, चीता, भालू, बंदरों को वहाँ से भगा कर उस जगह की लिपाई-पुताई करती है, उसे साफ-सुथरा बनाती है और जगह को साफ-सुथरा करने के बाद राजकुमारी चली आती है। दूसरे दिन वो होने से पहले फिर उस जगह पर पहुँच जाती है और वहाँ पर जाकर उसने गंगाजल को छिड़क कर उस जगह के लिए पवित्र किया। उसके बाद में राजकुमारी Surya देव का ध्यान करने के लिए बैठ जाती है। मित्रों जैसा कि राजकुमारी के लिए पाताल लोक में राजकुमार ने बताया था, ठीक वैसा ही राजकुमारी करने लगी। अब हुआ क्या ठीक बारह बजे Surya भगवान का रथ उसी वृक्ष के समीप आकर रुकता है। जब Surya भगवान ने रथ से नीचे के लिए देखा तो वहाँ का पवित्र वातावरण देखकर Surya देव बड़े प्रसन्न हुए, Surya देव कहने लगे जिस किसी ने ये काम किया है वो व्यक्ति मेरे पास आकर मुझसे मन चाहा वरदान मांग ले बिना कुछ सोचे समझे आज मैं उसे मुँह माँगा वरदान दूँगा जैसे ही राजकुमारी ने Surya देव के ये वचन सुने तो राजकुमारी ने बिना समय गवाए सूर्य देवता के समक्ष पहुँच गयी और उन्हें प्रणाम करके खड़ी हो गयी हे भगवान इस जगह की साफ सफाई करने वाली इस जगह को पवित्र बनाने वाली मैं हूँ Surya देव ने कहा अच्छा देवी यदि तुमने को पवित्र किया है तो आज मैं तुम्हें वरदान देता हूँ तुम्हारे मन में जो हो वो मुझसे माँग लो तब राजकुमारी ने जवाब दिया हे Surya देव देवता मुझे आप अपने रथ का दाहिना घोड़ा दे दो तब Surya देव कहने लगे नहीं नहीं मैं तुम्हें और कुछ भी दे सकता हूँ लेकिन अपने रथ का दाहिना घोड़ा नहीं दे सकता मेरे पास मेरे रथ के अलावा बारह घोड़े और है तुम चाहो तो उनमें से कोई घोड़ा माँग लो लेकिन मैं तुम्हें अपना दाहिना घोड़ा नहीं दे सकता मित्रों Surya के इनकार करने पर भी राजकुमारी बार बार उनके रथ को दाहिने घोड़े को ही मांगती जा रही थी कहने लगी हे देव यदि आपने अपने रथ का दाहिना घोड़ा नहीं दिया तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगी राजकुमारी की बात सुनकर Surya देवता बड़े मजबूर हो जाते हैं क्योंकि Surya देव ने राजकुमारी के लिए वचन दिया था आज उन्हें अपने वचन की लाज रखनी थी Surya देव राजकुमारी के द्वारा दिए गए उस वचन से पलट नहीं सकते थे Surya देव ने जवाब दिया ठीक हैं मैंने तुम्हें अपना दाहिना घोड़ा दिया। लेकिन वो घोड़ा तुम्हें यहाँ पर नहीं पाताल लोक में मिलेगा वहाँ से जाकर ले आना। राजकुमारी कहने लगी सूर्यदेव पाताल लोक तो क्या है, वो अपने घोड़े को पाने के लिए कहीं भी जा सकती है। राजकुमारी को वरदान देकर सूर्य देवता अंतर्ध्यान हो गए। इधर राजकुमारी अपने भोजनालय पर लौट आई और शाम को बूढी माँ को लेकर उस पत्थर के पास पहुंच जाती है, जैसे ही शाम होती है, वहां पर वो कपिला गाय आती है, उसने अपने सिंह को उस सुरंग का वो पत्थर हटा दिया जैसे ही गाय उसके अंदर जाने को हुई तो राजकुमारी ने उस गाय की पूंछ पकड़ ली राजकुमार और वो बूढी माँ पाताल लोक में पहुँच गए फिर से उनके सामने उसी तरह की घटना होती है घोडा आया और कुंड में स्नान करने के बाद वो राजकुमार बन जाता है और अपने पलंग पर जाकर बैठ जाता है उसके खाने के लिए भोजन का थाल आता है भोजन करने के बाद राजकुमार ने फिर से उस तोते से सवाल किया की धरती पर उसके माता पिता कैसे है तोते ने बताया राजकुमार आपके माता-पिता आपकी चिंता में बिल्कुल मरने की स्थिति में है। राजकुमार की आंखों में ये सुनकर आंसू आ जाते हैं उसके बाद उसने पूछा कि हे तोता मेरे राज्य को कौन चला रहा है? तोते ने बताया कि आपके राज्य को आपका प्रधानमंत्री चला रहा है। और धीरे-धीरे वो तुम्हारे राज्य का **** खजाना सब हड़प कर चुका है। वो प्रजा पर बड़ा जुल्म ढाता है। बहुत अत्याचार करता है इस प्रकार तोता के मुख से इस बात को सुनकर के राजकुमार बड़ा क्रोध आता है, अब राजकुमार पूछने लगा, हे तोता आखिर अब मेरी पत्नी क्या कर रही है? इतना सब सुनने के बाद में तोता अब कुछ नहीं कहता है, वो बिल्कुल चुप हो जाता है.

अब रानी का संयम जवाब देने लगा, वो दौड़ कर के अपने पति के सम्मुख आ पहुंची. तब उसी समय पर राजकुमार रानी से कहने लगा, हे राजकुमारी अब मैं तुम्हें प्राप्त हो चुका हूं. तुमने अपने तप और भक्ति से मुझे जीत लिया है. तब राजकुमारी ने जवाब दिया, हे स्वामी अब आप फिर से घोडा तो नहीं बनोगे? राजकुमार ने जवाब दिया, नहीं रानी तुमने मुझे सूर्य देवता से माँगा है इसलिए मैं तुम्हारा हूँ अब मैं दोबारा घोडा कभी नहीं बनूँगा तब राजकुमारी से उस राजकुमार ने कहा हे राजकुमारी तुमने मुझे प्राप्त करने के लिए इतनी सारी मुसीबतें उठाई, इतने सारे कष्ट उठाए हैं, सूर्यदेव ने मुझे सदा के लिए उस जन्म से मुक्त कर दिया है, राजकुमार ने बड़े ही प्यार से राजकुमारी को गले लगाया और अपने वस्त्रों से उसके आंसू पोंछे। रात बिताने के जब सवेरा होता है, तो वो गाय पृथ्वी लोक पर आने लगती है, वो राजकुमार अपनी पत्नी को लेकर उस बूढ़ी माँ के साथ गाय की पूँछ पकड़ कर पृथ्वी पर आ जाता है, ऊपर आने पर बूढ़ी माँ और राजकुमार सीधे भोजनालय पहुंचते हैं, उन्होंने जाकर वहाँ का सब सामान लोगों में बाँट दिया और अपने भोजनालय पर ताला लगाकर अपने राज्य के लिए लौट गए, घर आकर देखा कि वो प्रधानमंत्री राजकुमार को देखकर घबरा जाता है, दरअसल प्रधानमंत्री यह समझता था कि राजा का कोई बेटा तो है नहीं, इसलिए राजा भी बहुत हो चुका है। अब तो राज्य उसी का है। अब तो राजकुमार ने उस प्रधानमंत्री को बंदी बनाकर कैद खाने में डाल दिया और पहले की तरह अपना राज्य सिंहासन सब कुछ अपने हाथ में ले लिया। उसके बाद राजकुमार अपने बूढ़े माता-पिता से मिलने जाता है। तब राजकुमार जाकर देखता है कि उसके माता-पिता उसके वियोग में बिल्कुल सुख कर कांटा हो चुके हैं। अपने बेटे को आया हुआ देखकर राजा और रानी की आंखों में आंसू बहने लगते हैं। वे दोनों अपनी बढ़ती उम्र के कारण बेटे की राह देखते-देखते बूढ़े हो चुके थे। उनके शरीर में किसी की कोई ताकत नहीं बची थी अपने पुत्र को जैसे ही उन दोनों ने देखा तो एकदम से गले लगा लिया बड़े प्यार के साथ अपने बेटे को सहलाने लगे अपने बेटे को प्राप्त करने के बाद राजा और रानी के शरीर में एक नवजान आ जाती है कुछ दिनों में ही वो अपने बिस्तर से उठकर बैठने लगे राजकुमार के लौटने की खबर पूरे राज्य में फैल गयी मित्रों अब तो उस राज्य की प्रजा बड़ा खुश हुई राजकुमार रथ पर बैठकर अपनी पूरी प्रजा को दर्शन देता है और वचन देता है कि अब तुम पर कोई जुल्म नहीं करेगा मेरे पिता के वृद्ध पर धूर्त मंत्री अपनी मनमर्जी करने लगा था उन्हें मैंने बंदीगृह में डाल दिया है। अब आप पर कोई अत्याचार नहीं करेगा। दोस्तों इस तरह से राजा Sudhas और रानी Sonvati अपने पुत्र को राजा बनाने के बाद ईश्वर की भक्ति करने के लिए जंगल में चले जाते हैं। और इधर राजकुमार अपनी प्रिय के साथ हंसी खुशी से अपना राज्य कार्य करने लगता है। कहानी का तात्पर्य ये है अगर किसी की स्त्री पतिव्रति और सच्ची है तो वो विधाता के को भी बदल सकती है.

पतिव्रताओं ने तो ब्रह्मांड के सबसे बड़े देवताओं को भी अपने वश में कर लिया था ये कितनी बड़ी बात थी.

मित्रों राजकुमार अपनी पत्नी राजकुमारी को समझाता है हे प्रिय स्त्रियों में ये सबसे बड़ी कमी होती है कि वे जिस काम की जिद कर जाए तो फिर वे उसे करवा कर ही मानती है. चाहे उसके लिए उन्हें कितनी ही बड़ी कीमत चुकानी क्यों ना पड़े. यदि तुम जिद ना करती तो मैं तुमसे अलग नहीं होता.

नारियों के गुणों करें तो गुण तो उनके अंदर बहुत होते हैं, जिनका वर्णन कर पाना बड़ा मुश्किल है, मगर कुछ दोषों की बात करें तो नारियों के लिए तीन दोष सर्वनाश करवा देते हैं. पहला दोष होता है व्यर्थ की हठ, दूसरा दोष होता है झूठा रोना और तीसरा दोष होता है कटुवाणी, देवी द्रोपदी के हठ ने महाभारत करवा दिया था. सुपनखा के झूठे रोने ने रावण का वंश मिटवा दिया. और स्त्रियों की कर्कशवाणी ने ना जाने कितने घरों को उजड़वा दिया.

नारी की वाणी में अमृत भी होता है और विष भी होता है. ये उसके ऊपर है किसे अमृत पिलाती है और किसे विष लेकिन नारी के त्याग, प्रेम और तपस्या की बात करें तो उसकी कोई सीमा नहीं है पति के प्राण बचाने के लिए यमलोक तक भी नारी पहुँच जाती है और दोषों की बात करें तो अपने पति की मृत्यु का कारण भी स्वर्ण बन जाती है। मित्रों ये कहानी कैसी लगी अपने comment section में अपनी राय जरूर देना। मिलते है आपसे अगली video में एक और चर्चा के साथ। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। जय श्री Krishna. Hindi story