शिवरात्रि के दिन😱गाय को खिला देना ये 1 चीज शिव जी होते हैं प्रसन्न पितृदोष मंगलदोष होगा दूर

आठ मार्च दो हजार चौबीस दिन शुक्रवार के दिन महाशिवरात्रि है जोकि पूरे तीन सौ साल के बाद जाकर के ऐसा विशेष और दुर्लभ अद्भुत पवित्र महाशिवरात्रि का अति उत्तम और शुभ पर्व पड़ा है। दोस्तों ऐसे में इस शुभ घड़ी पर गाय माता को चुपके से खिला देना यह एक चीज कुंडली के हो जाएंगे। वारे-न्यारे दिन दुगनी रात चौगुनी होगी तरक्की। भगवान शिव आपकी झोली खुशियों से भर देंगे। आपको कभी गरीबी का सामना नहीं करना पड़ेगा। साक्षात गाय में भगवान शिव का वास होता है, परिवार सहित परिवार का वास होता है। तैंतीस कोटि देवी देवताओं का वास होता है। भले ही आप शिवरात्रि पर शिवलिंग के ऊपर जल अर्पित ना कर पाए। लेकिन गाय माता को यह एक चीज जरूर खिला देना। भगवान शिव दौड़े चले आएंगे दोस्तों, शिवरात्रि पर गाय की सेवा करने से गाय को रोटी खिलाने से क्या फल मिलता है। और महाशिवरात्रि के दिन गाय के किस अंग को स्पर्श करने से रोग नष्ट होते हैं, गाय को नमस्कार करने से क्या फल मिलता है, इससे मनुष्य को कितने फायदे मिलते हैं? आज इस प्राचीन महान कथा के माध्यम से हम आपको बताते हैं तो चलिए बिना देरी किए आपको सुनाते हैं गौ माता की यह महान कथा दोस्तों एक बार देवर्षि नारद भगवान श्री कृष्ण से मिलने के लिए द्वारका नगरी में पधारते हैं। भगवान श्री कृष्ण के पास आकर नारद जी उन्हें प्रणाम करते हैं। देवर्षि नारद को देखकर भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं और पूछने लगते हैं। हे देवर्षि आपका द्वारका में स्वागत है। आज किस प्रयोजन से द्वारका में आने का आपने निर्णय लिया। देवर्षि नारद साथ कहने लगते है हे प्रभु आप तो सब कुछ जानते है फिर भी इस दास से पूछ रहे है भला आपसे कोई बात छुपी हुई है मेरे मन में क्या प्रश्न है आपको भलीभांति पता है भगवान श्री कृष्ण कहते है हे देववर्षी मैं आपकी दुविधा को जानता हूँ और यह भी जानता हूँ कि आप समस्त मनुष्य जाति के कल्याण के लिए ही आज यहाँ पर पधारे है आप निसंकोच होकर पूछे आपके मन में जो भी प्रश्न हो फिर देववर्षी कहने लगते है हे प्रभु यदि आप चाहते है तो मैं आपसे एक प्रश्न पूछने की चेष्टा करता हूँ प्रभु मैं आज पृथ्वी लोक का भ्रमण कर रहा था, तो मैंने बड़ा ही विचित्र दृश्य देखा, मैंने देखा कि कुछ दुष्ट मनुष्य गायों को मार रहे थे। वहीं दूसरी ओर कुछ मनुष्य गायों की पूजा भी कर रहे थे। तो प्रभु ये दृश्य देखकर मुझे बड़ी व्यथा हुई। मनुष्य खुद के स्वार्थ के लिए निष्पाप पशुओं पर अत्याचार क्यों करता है। हे प्रभु, मेरे मन में ये जानने की जिज्ञासा हो रही है। कि जो मनुष्य गाय की सेवा करता है, उसकी पूजा करता है, उसे क्या फल मिलता है और जो पापी गायों पर अत्याचार करता है, उन्हें कौन सा दंड मिलता है? इस प्रकार से नारद जी द्वारा पूछे जाने पर भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए कहने लगते हैं हे देववर्षी आपने बहुत ही उत्तम प्रश्न किया है। जो गायों को कष्ट देता है उसे तो उसके पाप कर्मों के लिए **** में दंड अवश्य मिलता है। किंतु जो गायों की सेवा करता है उन्हें उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। गायों की सेवा करने से पृथ्वी लोक पर और परलोक में मनुष्य को कौन सा फल मिलता है मैं आपको इस कथा के माध्यम से समझाता हूँ हे देवर्षी आप इस कथा को ध्यान से पूरा जरूर सुने इस कथा को जो भी मनुष्य सुनता है और इसका प्रचार करता है उसके समस्त पाप नष्ट हो हैं उसे धन-धान्य की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद वह मेरे धाम गोलोक में जाता है। देवर्ष कहने लगते हैं हे प्रभु यह मेरे सौभाग्य है कि आपके मुख से मुझे यह कथा सुनने को मिल रही है। मैं इस कथा को ध्यान से पूरा सुनूंगा और इसका प्रचार मनुष्य में करूंगा। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं हे देववर्षी प्राचीन काल की बात है। पृथ्वी लोक पर वैवस्वत मनु के वंश में एक दिलीप नाम के राजा हो गए हैं। महाराज दिलीप धर्म का पालन करने वाले गुणवान, तथा महा पराक्रमी थे। उन्होंने धर्मपूर्वक पृथ्वी का पालन किया और अपनी प्रजा को सदैव ही प्रसन्न रखा। उनकी प्रजा सदैव उनसे संतुष्ट रहती थी। मगर देश की राजकुमारी सुदक्षिणा महाराज दलीप की पत्नी थी महाराज दलिप और महारानी सुदक्षिणा बड़ी ही प्रसन्नता से रहने लगे थे। किंतु अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी महारानी के गर्भ से कोई संतान नहीं हुई। तब महाराज दलीप एकांत में बैठकर सोचने लगे। कि मैंने कभी कोई पाप नहीं किया है। और मैंने सदैव ही धर्म के मार्ग पर चलकर ही सभी कार्य किए हैं। फिर भी मेरे किस दोष के कारण संतान प्राप्ति नहीं हो रही है। इतना सोचकर वे बहुत चिंतित हो गए फिर उनके मन में एक विचार आया कि इस समस्या का समाधान केवल गुरु वशिष्ट जी ही कर सकते हैं। वे ही मुझे मेरे दोष के बारे में बताएँगे और पुत्र प्राप्ति के लिए कोई उपाय बताएँगे। इतना सोचकर महाराज दिलीप अपनी पत्नी के साथ गुरु वशिष्ट जी के आश्रम पर पहुंच गए। आश्रम पर वशिष्ठ जी नित्य कर्म, ध्यान आदिकार्य समाप्त करके अपनी पत्नी अरुंधति के साथ बैठे हुए थे। उसी समय महाराज दलीप रानी के साथ उनके पास जाते हैं और उनका दर्शन करते हैं। वशिष्ठ जी महाराज दलीप का स्वागत किया। और उनकी पत्नी अरुंधति ने महारानी का स्वागत किया। और उनका कुशल मंगल पूछते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया। वशिष्ठ जी महाराज दलीप से कहने लगे हे राजन सब कुशल मंगल तो है ना? आप और महारानी का आज अचानक वन में मेरी कुटियाओं में पधारने का क्या प्रयोजन है। किस कारण से एक महान सम्राट को अपना राजपाट छोड़कर इस वन में आना पड़ा। ईश्वकुकुल के सभी राजा महाराज पुत्र उत्पन्न करके उन्हें अपना राज्य सौंपकर तपस्या करने के लिए वन में आते है किंतु आप अभी भी जवान है। आपने अभी-अभी राज्य का कार्यभार संभाला है। आपने अभी तक पुत्र भी उत्पन्न नहीं किया है। फिर आप ऐसे अपना राजपाट छोड़कर वन में क्यों चले आ गए? ये आप जैसे महान सम्राट को शोभा नहीं देता है। फिर महाराज दिलीप कहते हैं, हे महर्षि मैं आपके यहाँ पर तपस्या करने के लिए नहीं आया हूँ। गुरुदेव मैं आपके पास सहायता मांगने के उद्देश्य से आया हूँ। कृपया आप मेरी सहायता कीजिए, मैं बहुत दुख में हूँ। फिर महर्षि अगस्त्य कहते हैं, हे राजन, आपके जैसे महान सम्राट को भला किस बात की सहायता चाहिए। आप तो स्वयं सभी की रक्षा एवं सहायता करने में सक्षम हैं। महाराज दिलीप कहते हैं, हे गुरुदेव, मैं आपके पास यह जानने के लिए आया हूँ कि किस दोष के कारण मुझे अभी तक पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई है। कृपया आप अपनी दिव्य शक्ति से जानकर मुझे मेरा दोष बताइए। और उस दोष के निवारण के लिए उपाय भी अवश्य बताइए। पुत्र के बिना मेरा जीवन व्यर्थ हो जाएगा, मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी। तब महर्षि कहते हैं, हे राजन ये तो आश्चर्य की बात है, मैं अवश्य आपकी सहायता करूंगा। फिर महर्षि अगस्त्य अपनी दिव्य दृष्टि से महाराज के भूतकाल को देखने लगते हैं। तो उन्हें राजा की एक भूल के बारे में पता चलता है। महर्षि अगस्त्य महाराज से कहते हैं, हे राजन, आपसे एक बड़ी भूल हुई है, जिसका आपको ज्ञान नहीं है। जब आप इंद्रलोक में देवराज से मिलकर लौट रहे थे, तभी मार्ग में एक कल्पवृक्ष के नीचे खड़ी गाय और उसके बछड़े को आपने दुर्लक्ष कर दिया था। वह गाय और उसका बछड़ा अत्यंत भूखे और कष्ट में थे। आपने उस कामधेनु गाय को न भोजन कराया और ना ही उसे नमस्कार किया। उस गाय ने आपसे सहायता भी मांगी। किंतु आप अपनी प्रसन्नता में खोए हुए थे और आपको उस गाय की पुकार भी सुनाई नहीं दी। आपकी कृतज्ञता को देखकर वह गाय अत्यंत दुखी हुई और उसने आपको श्राप दे दिया है। हे राजन जो मनुष्य गाय को कष्ट में देखकर उसकी सहायता नहीं करता, भूखी गौ माता को भोजन नहीं कराता, उसे तो महापाप लगता है। और उसी गाय के श्राप के कारण आपकी कोई संतान नहीं है। इस प्रकार महर्षि अगस्त्य ने महाराज दलीप को उनके दोष के बारे में बता दिया। जिसे सुनकर महाराज बहुत दुखी हुए और पश्चाताप करते हुए कहने लगे हाय ये मैंने क्या कर दिया? मुझ पर धिक्कार है मेरी ही मूर्खता के कारण एक गाय को और उसके कोमल बछड़े को इतना दुख सहन करना पड़ा। मुझे तो अब राजा बने रहने का भी अधिकार नहीं है। महाराज महर्षि अगस्त्य से कहते हैं। हे गुरुदेव मैं अपनी इस भूल को सुधारना चाहता हूँ कृपया आप ही मुझे कोई उपाय बताइए। जिससे मैं इस घोर पाप से मुक्ति पा सकूँ। मेरा अपराध के योग्य नहीं है किंतु फिर भी मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ। फिर महर्षि अगस्त्य कहने लगते हैं, हे राजन आप दुखी ना हो। इस दोष से मुक्ति का उपाय अवश्य है। आप मेरे आश्रम की नंदिनी नाम की गाय की सेवा करो। वह उसी कामधेनु गाय की पुत्री है, जिसकी आपने सहायता नहीं की थी। अपनी पत्नी के साथ मिलकर तुम उस गाय की सेवा करो, उसकी आराधना करो, वह तुम्हें अवश्य पुत्र प्रदान करेगी। तभी वह नंदिनी गाय बाहर से उस आश्रम में प्रवेश करती है। उस गाय को महर्षि अगस्त्य बोले हे राजन देखिए केवल स्मरण करने मात्र से ही कल्याण करने वाली यह नंदिनी गाय स्वयं चलकर आई है। आप भाग्यशाली है यह गाय निश्चित ही आपके दुख दूर करेगी। आप वन में इस नंदिनी गाय के पीछे-पीछे चलकर इसकी सेवा करो। जंगल में रहने वाले हिंस्र पशुओं से इसकी रक्षा करो और आश्रम में लौट आने पर रानी सुदक्षिणा इस गाय की सेवा करें। इससे प्रसन्न होकर ये गाय तुम्हें निश्चित ही पुत्र प्रदान करेगी। फिर महाराज दिलीप ने ऐसा ही करने का वचन दिया। और फिर दूसरे दिन महारानी ने गाय की पूजा की और महाराज उस गाय को चराने के लिए वन में लेकर गए। जब वह गाय चलने लगती तो महाराज उसके पीछे-पीछे चलते। इधर-उधर से हरी-हरी घास लाकर उस गाय को खिलाने लगते। जब वह गाय किसी वृक्ष के नीचे बैठती, तो महाराज भी उसके साथ बैठकर विश्राम करते। महाराज उस गाय के शरीर से dance और मच्छरों को हटाते और अपने हाथों से उसके मस्तक को सहलाते। इस प्रकार से महाराज उस गाय की सेवा में लगे रहे। जब शाम हुई तो महाराज उस गाय के साथ आश्रम में लौट आए। आश्रम में पहुँचते ही उस गाय ने अपने खुरों से महाराज पर धूल उड़ाई। जिससे महाराज का शरीर हो गया और उसके सभी पाप नष्ट हो गए। फिर महारानी सुदक्षिणा ने आगे आकर नंदिनी की अगवानी की और विधि पूर्वक उस गाय का पूजन किया। तथा बारंबार उसके चरणों में मस्तक झुकाया। फिर उस गाय की प्रदक्षिणा करके हाथ जोड़कर वह उसके आगे खड़ी हो गई। फिर उस गाय ने उस रानी की पूजा को स्वीकार किया। और रानी पर अपनी दृष्टि डालकर उसके सभी दोष समाप्त कर दिए। गाय की दृष्टि पड़ते ही रानी अत्यंत पवित्र हो गई। इस प्रकार से महाराज दिलीप को उस नंदिनी गाय की सेवा करते हुए, बीस दिन बीत गए, फिर इक्कीसवें दिन जब गाय को लेकर वन चले गए। तो वह गाय चरते-चरते हिमालय पर्वत पर चली गई और महाराज भी उसके पीछे-पीछे चले गए। वहां उस पर्वत पर खड़े होकर महाराज उस हिमालय पर्वत की सुंदरता को निहार रहे थे। इतने में ही एक शेर ने आकर उस नंदिनी गाय को बलपूर्वक दबोच लिया। राजा को उस शेर के आने की आहट तक नहीं हुई। उस शेर के चंगुल में फंसी नंदिनी ने दयनीय स्वर से बड़े जोर से चीत्कार किया, हे महाराज, मेरी रक्षा करो, हे महाराज मेरी रक्षा करो, जैसे ही महाराज ने उस गाय की पुकार सुनी, तो उन्होंने देखा कि एक भयंकर शेर ने उस गाय को दबोच लिया है और उस गाय की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही है। जिसे देखकर महाराज व्यथित हो उठे। और उन्होंने तुरंत ही अपना बाण निकाला और धनुष की डोरी पर रखा और उस शेर को मारने के लिए प्रत्यंचा खींची। उसी समय उस शेर ने महाराज की तरफ देखा। उस शेर की दृष्टि पड़ते ही महाराज का शरीर स्तब्ध हो गया, उनकी शक्ति क्षीण हो गई। उनका सारा बल नष्ट हो गया। अब उनके अंदर बाण को छोड़ने की भी शक्ति नहीं रही। फिर वह शेर उस महाराज से बोलने लगा, हे राजन, मेरे ऊपर प्रहार करना तुम्हारे बस की बात नहीं है। क्योंकि भगवान शिव मेरी ही पीठ पर पैर रखकर नंदी पर बैठते हैं। इसीलिए तुम मुझे मारने की चेष्टा मत करो। और यहां से लौट जाओ। विधाता ने इस गाय को आज मेरा ग्रास नियुक्त किया है। इसीलिए तुम इसमें दखल मत दो। मैं जानता हूं, तुम सूर्यवंश में जन्मे हुए राजा दिलीप हो, इस हिमालय पर्वत पर भगवान शिव की बड़ी माया फैली हुई है। इसीलिए तुम तुरंत से निकल जाओ। फिर महाराज बोलने लगे, हे मृगराज कृपया आप इस गाय को ना मारे। ये महर्षि वशिष्ट जी की सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाली नंदिनी गाय है। इसकी हत्या करने पर तुम्हें महापाप लगेगा। गुरुदेव ने मुझे इस गाय की रक्षा और सेवा करने का आदेश दिया है। इस गाय का एक बछड़ा भी है, जो घर पर इसकी राह देख रहा है। मैं इस गाय को मरने के लिए छोड़कर नहीं जा सकता। तुम भगवान शिव के सेवक हो। इसीलिए तुम्हारे हाथ से इस गाय को छुड़ाना मेरे लिए असंभव इसीलिए हे मृगराज मेरी आपसे विनती है कि आप इस गाय को जीवनदान दो। इस गाय के बदले में मैं तुम्हें अपना शरीर समर्पित करता हूँ जिससे तुम्हारी भूख भी शांत हो जाएगी और इस गाय की रक्षा भी हो जाएगी और मेरे वचन का पालन भी हो जाएगा। साथ ही गौ रक्षा के लिए प्राण त्यागने से मुझे उत्तम गति की प्राप्ति होगी। इतना कहकर महाराज उस शेर के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और आँखें बंद की। फिर अचानक से उस राजा के कानों में स्वर पड़े, उठो मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हूँ ये सुनकर महाराज उठ खड़े हुए और उन्होंने अपने सामने उस गाय को देखा और वह शेर कहीं दिखाई नहीं दे रहा था तब वह नंदिनी गाय राजा दिलीप से कहने लगी हे राजन मैंने ही अपनी माया से शेर का रूप धारण करके तुम्हारी परीक्षा ली है यमराज भी मुझे पकड़ने का विचार नहीं कर सकते मेरी रक्षा के लिए तुम अपने प्राण देने के लिए तैयार थे इसीलिए मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ अब तुम मुझे जो तुम्हारी मनोकामना है वह कहो मैं अवश्य पूर्ण करुँगी। महाराज दलीप कहते हैं हे गौ माता मेरे मन में जो इच्छा है आप वह अवश्य जानती होंगी कृपया मुझे पुत्र प्रदान कीजिए। मेरी यही कामना है। फिर उस नंदिनी गाय ने कहा हे बेटा तुम पत्ते के द्रोण में मेरा दूध लेकर उसका पान करो इससे तुम्हें अत्यंत बुद्धिमान और गुणवान पुत्र की प्राप्ति होगी। महाराज दलीप कहने लगे हे माता इस समय पर मैं आपके मधुर वचन सुनकर ही तृप्त हो चुका हूँ। अब आप मेरे साथ पर चलिए। और मैं आपकी पूजा, आराधना करके तथा मेरे अनुष्ठान को पूरा करके आपके अमृत समान दूध का पान करता हूँ। उसके बाद महाराज दिलीप उस गाय को लेकर आश्रम चले गए। आश्रम में पहुंचने पर महारानी सुदक्षिणा ने आगे आकर उस गाय का पूजन किया। तब उस गाय ने कहा, हे महारानी, आप मेरी पीठ को स्पर्श करें। इससे आपको अत्यंत गुणवान, बलवान और विद्वान पुत्र की प्राप्ति होगी। फिर महारानी ने गाय की पीठ को स्पर्श किया। महाराज और महारानी ने उस गाय की विधि आराधना की और उनके अमृत के समान दूध को प्रसाद समझकर ग्रहण किया। उन दोनों की प्रसन्नता देखकर महर्षि वशिष्ट कहने लगे हे राजन अब यह गाय तुम दोनों पर प्रसन्न है। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। जो भी मनुष्य गाय की सेवा करता है उसे भोजन कराता है, उसकी प्रदक्षिणा करता है, उसके सभी मनोरथ सफल होते हैं। जो भी गाय की रक्षा करता है, उसकी कभी दुर्गति नहीं होती है, मृत्यु के बाद वह गोलोक में जाता है और भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन करने का सौभाग्य उसे प्राप्त होता है, जो पूर्वक गाय का दूध पीता है वह सभी रोगों से दूर रहता है। जो गाय की पीठ पर जो कूबड़ होता है उसे स्पर्श कर लेता है उसके सभी दोष और पाप नष्ट हो जाते हैं। जो गाय का दान करता है वह वैतरणीय नदी को गाय की पूंछ पकड़ कर पार कर लेता है। जो स्त्री रोज गाय को रोटी खिलाती है वह सौभाग्यशाली बन जाती है। गाय समस्त पापों का नाश करने वाली और सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली है। अतः सदैव इसका रक्षण पूजन तथा इसे भोजन कराना चाहिए। इतना करने से ही मनुष्य सभी ऐश्वर्यों को प्राप्त कर लेता है। उसकी दरिद्रता समाप्त हो जाती फिर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, हे देवर्षि इस प्रकार से महाराज दलीप द्वारा गाय की सेवा करने से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसका नाम रघु रखा गया, जिसके नाम से इस पृथ्वी पर सूर्यवंश की ख्याति हुई और बाद में उसका वंश, रघुवंश नाम से प्रसिद्ध हुआ। तो दोस्तों आप भी नित्य गाय की सेवा करें, रोज गाय को रोटी खिलाएं, गाय की रक्षा करें, आपको ये कथा कैसी लगी comment करके जरूर पूरा video देखना बहुत ही महत्वपूर्ण video है। आपके लिए लाभकारी video है, क्या है वीडियो का सबसे पहले तो आपसे रिक्वेस्ट करते हैं। भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी के सच्चे भक्त वीडियो को लाइक कर देना। और सच्चे दिल से कमेंट बॉक्स में जय श्री विष्णु, जय महालक्ष्मी, जय गौ माता जरूर लिख देना। जैसे आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएं और ज्यादा से ज्यादा वीडियो को अपने दोस्तों में शेयर जरूर करना। चलिए, शुरू करते हैं, कौन-कौन से गाय से जुड़े उपाय। दोस्तों, सनातन परंपरा में गाय गंगा और गया तरीका ज्यादा धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि माता के पर तैंतीस कोटि देवी-देवताओं का वास होता गौ, माता की सेवा एवं पूजा करने वाले जातक पर इन सभी देवी देवताओं की कृपा बरसती है। गौ सेवा से ना सिर्फ इस जन्म के बल्कि पूर्व जन्म के भी दोष दूर हो जाते हैं। प्रत्येक सुबह जब आपके घर में भोजन बना प्रारंभ हो तो सबसे पहले बनाई गई रोटी को आप गौ माता के नाम से निकाल दें। और भोजन करने से पूर्व गौ माता को इस रोटी को खिलाएं। यदि संभव तो गाय को खिलाएं यदि काली गाय ना मिले तो सफेद गाय को भी हिला सकते हैं। प्रति एक ऊर्जा और मांगलिक कार्य में गौमाता या उनसे जुड़ी चीजें जैसे गाय का गोबर, गोमूत्र, गाय का दूध अथवा गाय के दूध से बना भी जरूर शामिल करें। इससे आपको उन्हीं की प्राप्ति होगी। सनातन परंपरा के अनुसार जिस घर में गाय होती है, उस घर से जुड़े सभी वास्तु दोष हो जाते हैं। किसी भी पूजा में गाय से हासिल पांच मई युक्त प्रथा का उपयोग जरूर शामिल करें। क्योंकि पंचम बिना कोई भी पूजा पाठ और हवन सफल नहीं होता जहाँ दोस्तों व कृपा पाने के लिए प्रतिदिन सप्ताह अथवा महीने में परिवार समेत एक बार गौशाला जाने का नियम जरूर बनाए और वहाँ गायों को हरा जरूर खेल इससे आपको शुभ फलों की प्राप्ति और साथ ही साथ गौ सेवा और ऊर्जा से नौ ग्रह शांत हो जाते हैं और इनसे जुड़े दोषों का निदान हो जाता है गर्मियों में गौ माताओं को पानी पिलाए और सदी में गौ माता को गुड जरूर ही ध्यान रखिए गर्मियों में गाय को गुड खिलाएं। अनेक देवी देवताओं को अपने शरीर पर धारण करने वाली गौ माता से जुड़े कई शुभ और अशुभ संकेत भी होते हैं। मसलन गाय का दूध धोते, समय यदि गाय ठोकर मार दें और सारा दूध बिखर जाए तो अब शगुन होता है। यदि कोई निकल रहा हो और गाय अपने बछड़े को दूध पिलाती शाम में आ जाए तो निश्चित रूप से जिस यात्रा के लिए आप निकले हैं, वह यात्रा आपके लिए ज़रूर ही सफल होगी। और वह काम जिसके आप निकले हैं, वह जरूर ही होगा। यात्रा पर जाते समय बाएं ओर गए हैं कि आना और रात्रि में गाय की हुंकार करना भी शुभ होता है। दोस्तों साथ ही साथ गाय के साथ। आप भूलकर भी यह काम ना करें, अन्यथा मिलता है घोर पाप और जीवन भर की परेशानियां। जी हाँ, दोस्तों, गाय को राष्ट्रीय पशु बनाए जाने और इन्हें मौलिक अधिकार दिए जाने की बात है। तो सवाल उठता है कि गाय जब भारतीय संस्कृत का अहम हिस्सा है। तभी गाय के लोग खराब व्यवहार कैसे करें? लेते हैं गाय दर-दर। भटकती रहती है। हर पल इन्हें चारा तक लोग नहीं देते। का जब तक दूध देती रहती है, तो उनकी सेवा होती है। और जैसे ही दूध देना बंद कर देती है, तो लोग इन्हें उनकी किस्मत पर छोड़ देते हैं, सड़कों पर और गलियों में भटकने के लिए। ऐसे में गोवंश ही जीवों को कोई डंडे से मारता है, तो कोई उन पर पानी डाल देता है। कभी वाहनों से इन्हें ठोकर लग जाती है, तो बीमार होकर बेचारी गाय दम तोड़ देती है। ऐसे में जरूरत है बातों को कि गाय को ले लेकर शास्त्रों में क्या कहा गया है? गाय के साथ आपको कैसा व्यवहार करना चाहिए? क्या आप दोस्तों गाय को कभी भी मारना पीटना नहीं चाहिए? शास्त्रों में गाय को माता का दर्जा दिया गया है? गाय को मारने पीटने वाला माता को मारने-पीटने वाले के समान पाप का भागी माना जाता है, ऐसे घरों को **** लोक में वर्षों तक कष्ट भोगना पड़ता है, अगले जन्म में मिलता है तथा कि गौतम मुनि ने गलती से गाय को डंडा मार दिया जिससे गाय की मृत्यु हो गई थी और इस पाप से मुक्ति के लिए इन्हें वर्षों तक तपस्या करनी पड़ी। ये भगवान श्री कृष्णा जी ने स्वरूप में आए वृत्तासुर का वध कर दिया था। जिससे मुट्ठी के या भगवान श्रीकृष्णा को संपूर्ण तीर्थों को एक झुंड में बुलाना पड़ा। और इस कुंड में स्नान से वह मुक्त हो गए थे, साथ ही साथ जो लोग पानी पी रहे को भगाते हैं, वे घोर पाप के भागी बनकर ना भोगते हैं, ऐसा पुराणों में बताया गया है। जबकि जो लोग गाय के लिए या और चारा बनवाते हैं, वह माँ होते हैं। ऐसे लोग घोर पाप से मुक्त होकर स्वर्ग पाए जाते हैं। और बड़े ही धनवान कुंड में जन्म लेकर सुख भोगते हैं। और साथ ही साथ आराम कर रही गाय को कष्ट देकर कभी भी उठाना नहीं चाहिए। कहते हैं कि जिस स्थान पर गाय बैठी है, वहां से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। गाय के बैठने की जगह को जो लोग नियमित साफ रखते हैं, वे पूर्व जन्म में किए गए जाने अनजाने पापों से मुक्ति हो जाते हैं और गोलोक में स्थान पाते हैं। गाय को डंडा मार कर उठाना पानी डालकर उठाने से मनुष्य पाप का भागी है। और अगले जन्म में उसे दर-दर भटकना पड़ता है। और साथ ही साथ शास्त्रों में बताया गया है कि गाय का दूध उसके बछड़े के लिए होता है। गाय के बछड़े से हुआ दूध ही मनुष्य को लेना चाहिए। परन्तु कुछ लोग एक बार गाय को दो लेने के बाद फिर से बछड़े के लिए हुआ दूध भी हो लेते हैं। ऐसा करना पाप कहा जाता है। ऐसे दूध को दो हारने वाला और ग्रहण करने वाला दोनों ही पाप के भागी बन जाते हैं। दोस्तों साथ ही साथ शास्त्रों में कहा गया है कि गौवंश यानी गाय और बैल के नहीं बैठना चाहिए। इनके एक पर बैठने से महा पाप लगता है। ऐसे लोगों की यातना भोगनी। पड़ती है एक मात्र महादेव के अंश से उत्पन्न नंदी ही गोवंश ही है जिस पर महादेव और महादेवी सवारी करती है। क्योंकि नंदी ने स्वयं इच्छा से महादेवी की सवारी बनना स्वीकार किया था। और साथ ही साथ शास्त्रों में गाय के दान को बहुत ही महत्व दिया गया है। परन्तु ऐसी गाय का दान कभी नहीं करना चाहिए, जो बूढ़े और बीमार हों। कठो परिषद में नचकेता की कथा भी इस गर्भ में है। कि जिस नचकेता ने पिता द्वारा बूढ़ी गाय को दान करने पर आपत्ति जताई थी। दूध देने वाली और बछड़े सहित जो लोग गाय का दान करते हैं, महान पुण्य को हासिल करके में स्थान पाते हैं। दोस्तों साथ ही साथ सूर्य चंद्र, मंगल, शुक्र की युति राहों से हो तो पितृ दोष होता है। यह भी मान है कि सूर्य का संबंध पिता से एवं मंगल का संबंध रक्त से होने के कारण सूर्य यदि शनि, राहू या केतु के साथ स्थित हो या दृष्टि संबंधी हो तथा मंगल की युति राहू या केतु से हो तो पितृदोष होता है। इस दोष से जीवन संघर्षमय बन जाता है। यदि पितृ दोष हो तो गाय को या किसी भी एकादशी कोई किसी पूर्णिमा के दिन या अमावस्या को रोटी, गुड, चारा आदि खिलाने से पितृदोष समाप्त हो जाता है, साथ ही साथ देसी गाय की पीठ पर जो खुद को बड़ा होता है, वह बृहस्पति गुरु है। आठ जन्मपत्री में। यदि बृहस्पति नीच राशि, मकर में वो सफल होगी और साथ ही साथ यह संकेत भी जाने। यदि आप यात्रा पर जा रहे हैं और सामने आपके गाय पर जाएं अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई गाय दिखाई दे जाए तो समझ जाना कि वह यात्रा आपके लिए जरूर ही सफल होंगी। और साथ ही साथ घर में गाय होती है। उसमें वास्तु दोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है और साथ ही साथ आपको बता दें कि गाय को आप जो भी रोटी बनाए, प्रतिदिन ताज़ी रोटी ही बनाएगा, तो अगर आपने रोटी बनाई है, तो कोशिश करें कि उस रोटी को आप तुरंत ही गाय को दे दें। अगर आप उस रोटी को रख देंगे और उस रोटी को अगले रोटी मानी जाएगी। गाय को कभी भी रोटी ना दें। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा वास करती है। और जो भी कार्य आपके बनने वाले होंगे वह कार्य भी आपके बिल्कुल भी नहीं बनेगी। इससे आपके घर में हमेशा दरिद्रता आवास रहेगा। और आप जिस भी कार्य को करेंगे, उस कार्य में आपको हमेशा असफलता ही हाथ लगेगी। इसलिए कोशिश करें, गाय को रोजाना ताजी रोटी बनाकर खिलाएं और रोटी को बिल्कुल ना रखें। बासी रोटी गाय को ना दें और साथ ही साथ सदी की गाय को नहीं खिलानी चाहिए, कि कोई फल है, कोई सब्जी है। सड़ जाए तो लोग क्या करते हैं, गाय को खिला देते हैं। नहीं ऐसा नहीं करना चाहिए, ऐसा करने से यदि आप गाय को खिलाते हैं, तो और पाप के भागी बन जाते हैं। आप बिल्कुल भी सड़ी-गली चीजें गाय को ना खिलाएं और सात आटे की लोईयां बनाकर उनके ऊपर हल्दी लगाएं। इसके बाद आप उन ग्यारह दोषियों को एक-एक करके को खिलाएं। प्रत्येक लोई को खिलाते समय गाय के सींग हो पर हाथ फेरें, पीठ पर फेरा, मस्तक पर हाथ फेरा। माता कहा कि आप चरण के स्पर्श करें। जहाँ दोस्तों ऐसा करने से आपके समस्त कार्य बनने लगेंगे। जो दुःख का समय चल रहा है, वह भी समाप्त होगा। आपके जीवन में खुशियां ही खुशियां होंगी। और एक बार आप सात बार गाय की परिक्रमा भी कर लें, तो आपके समस्त कार्य पूर्ण होंगे। साथ ही साथ आप गाय को जब भी रोटी दें, रोटी पर या तो आप थोड़ी हल्दी लगा लें, या थोड़ा गुड़ रख लें, तब गाय को खेलिए। आशा है आज की प्रस्तुति आपको समझ आ गई होगी। पर वीडियो अच्छा लगा हो तो चैनल को subscribe करके वीडियो को लाइक कर दीजिए। धन्यवाद।

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